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भण्डारण

चना का भण्डारण दो तरीके से किया जा सकता है

(क) बोरे में भरकर

(ख) थोक में वेयर  हाऊस या खुली हवा में रखना हो तो बोरों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि थोक में भण्डारण करना हो तो डिब्बा (बिन) एवं साइलो बेहतर होता है।
बोरों मे भण्डारण करना आसान रहता है क्योंकि, यह सस्ता तरीका है परन्तु इसमें घुन लगने एवं खराब होने का खतरा ज्यादा रहता है। खास किस्म के प्लास्टिक या फाइबर के बने बोरों में नुकसान कम होता है। धातु  द्वारा निर्मित बिनस (डिब्बे), ड्रम एवं छोटे साइलो में भण्डारण करने से चूहे, घुन, नमी एवं हवा से बचा जा सकता है। यदि लम्बे समय तक भण्डारण करना हो तो साइलो या बिनस बेहतर तरीका है।

घुन/ब्रुचिड प्रबन्धन

चना को भण्डारण उपरान्त मुख्य रूप से घुन (ब्रुचिड) द्वारा सर्वाधिक क्षति होती है। घुन को ढ़ोरा, चिरइया, धनुर और ब्रूचिड इत्यादि नामों से जाना जाता है। ज्यादातर दलहनी फसलों में घुन का प्रकोप खेत में फलियाँ पकते ही शुरू हो जाता है, जो कटाई उपरान्त दानों का उचित उपचार नहीं होने पर भंडारण में निरंतर बढ़ता ही जाता है। चना की फलियां पर रोएँ होने के कारण पकने की अवस्था में संक्रमण नहीं हो पाता है। क्यांकि घुन मादा को फलियों पर उपस्थित रोंए अंड़ारोपण करने में बाधा पहुँचाते हैं। अतः चना में घुन का संक्रमण भण्डारण से शुरू होता है। 
उचित एवं सुरक्षित भण्डारण के लिए निम्न उपाय अपनाने की संतुति की जाती है-

  • भण्डारण के पूर्व चना को साफ करके धूप में सूखा लेना चाहिए ताकि नमी का स्तर 12 प्रतिशत या इससे भी कम हो। 
  • छोटे कृषक चना को बोरों में भरकर सिलाई करके सीधा रखें।
  • बड़े कृषक चना को स्टील के पात्रों में भण्डारण करके दानों की ऊपरी सतह 2.5 सेमी. मोटी रेत व धूल रहित बालू से ढक दें ताकि घुन का पुनः प्रकोप व विकास न हो सके।
  • अल्प मात्रा में भण्डारण हेतु पारद टिकड़ी का प्रयोग करें या एल्युमीनियम फॉसफाइड की 1-2 गोली (3 ग्राम प्रत्येक) प्रति 10 क्विंटल बीज या ई.डी.बी. की 30 मी.ली. मात्रा प्रति 10 क्विंटल बीज के हिसाब से धूमीकरण करने से घुन का प्रकोप रोका जा सकता है।
  • घरेलू प्रयोग हेतु भण्डारण करना हो तो चना की दाल बनाकर उसे सरसों के तेल (अन्य खाद्य तेल- नारियल, मूँगफली सोयाबीन, तिल) लगभग 5-6 मी.ली. एवं हल्दी पाउडर 2 ग्राम प्रति किलो दाल की दर से उपचारित कर स्टील के बर्तन में भण्डारण कर सकते है। इस तरह घरेलू उपचार द्वारा 6-8 माह तक घुन के प्रकोप से बचा जा सकता है।
  • भण्डारण पूर्व गोदाम को साफ करें एवं दरारों छिद्रों को सीमेंट से बन्द कर दे एवं चूने से पुताई कर दें। साथ ही मैलाथियान दवा का 3 ली. प्रति 100 वर्ग मीटर की दर से छिड़काव कर भण्डार गृह को अच्छी तरह बंद करके सात दिनों के लिए छोड़ दें। उसके बाद चना भण्डारण करने पर घुन का प्रकोप कम होता है।
  • परम्परागत भण्डारण पात्रों के स्थान पर वैज्ञानिक विधि द्वारा निर्मित पात्र जैसे- पूसा बिन, पंतनगर कुठला, हापुड़ बिन इत्यादि का इस्तेमाल करें।
  • समेकित प्रबंधन
  • समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन फसल सुरक्षा का मिला जुला तंत्र है, जिससे सावधानी पूर्वक हानिकारक कीटों एवं रोगों के नियं़त्रण तथा उनके प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण की प्रतिक्रियाओं पर ध्यान दिया जाता है। समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन के मुख्य अंग हैं - हानिकारक कीटों व रोगों की निगरानी, समय से सस्य क्रियाओं का क्रियान्वयन, जैविक नियंत्रण, प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन, वानस्पतिक स्त्रोतों से प्राप्त कीटनाशक तथा उनका व्यवसायिक उत्पादन एवं प्रयोग, वातावरण को कम हानि पहँचाने वाले कीट/फफँूदी/सूत्रकृमिनाशी रसायनों का प्रयोग इत्यादि।
  • फसल चक्र, पंक्तियों के बीच अधिक दूरी, कीट रोग और सूत्रकृमि सहनशील प्रजातियों के साथ कीटनाशी, कवकनाशी तथा सूत्रकृमिनाशी का सीमित उपयोग परंपरागत किसानों के द्वारा प्रयोग किये जा रहे हैं। कीट, रोग और सूत्रकृमि प्रबंधन के अन्य साधनों के उपयोग के लिये काफी गंुजाइश है। परपोषी प्रतिरोधकता के साथ सस्य प्रक्रियायें और जैविक नियंत्रण का उपयोग भी एक विकल्प है। कीट रोग और सूत्रकृमि के प्रबंधन विकल्प फसल वार नीचे दिये गये हैः