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बुआई की विधि व समय

बुआई की विधि

सामान्यतः मसूर की बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती है, जो इस फसल की कम पैदावार का एक बडा कारण है। अतः अधिक उपज लेने के लिए बीजों को पंक्तियों में बोने की संस्तुति की जाती है। मसूर की बुवाई सीड ड्रिल से करनी चाहिए। मसूर की अच्छी उपज लेने के लिए खेत में पौधों की समुचित संख्या का होना आवश्यक है। सामान्य परिस्थितियों में पंक्तियों (कूंडों) के बीच की दूरी 20 से 25 सेमी. तथा पौधों के मध्य दूरी 3 से 5 सेमी. रखी जाती है। असिंचित एवं पिछेती बुवाई की दशा में कूंड से कूंड की दूरी 18 से 20 सेमी. रखना चाहिए। बुवाई के बाद अच्छी तरह से पाटा लगा दें ताकि नमी संरक्षित रहें। 

बुआई का समय

समय से पूर्व व देरी से की गयी इुवाई दोनो ही फसल पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। उत्तर पश्चिम समतल क्षेत्र में अक्टूबर के अन्त तक तो उत्तर पूर्वी समतल क्षेत्रों में नवम्बर के दूसरे पखवाड़े तक मृदा में नमी की उपस्थिति के आधार पर कर ली जाती है। मध्य क्षेत्र में जँहा नमी की कमी रहती है वहाँ अक्टूबर के मध्य तक का समय सही रहता है। उतेरा पाद्वति में बुवाई का समय धान को फसल के पकने तथा वर्षा पर निर्भर करता है। निचले क्षोत्रों में धानके खेतो में सितम्बर के अन्त अथवा अक्टूबर की शुरूआत  में पानी भर जाता है इसके उपरान्त धान को फसल पकने के 7-10 दिन पहले मसूर को छिडकाव विधि से बुवाई कर दी जाती है। 

असिंचित दशा में मसूर की बुवाई का उचित समय अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा है एवं सिंचित दशा में बुवाई नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक कर लेनी चाहिए।