रुक्ष रोग ( ऐन्थ्रेकजोन)
इस रोग के कारण फसल की उत्पादकता व गुणवत्ता दोनो प्रभावित होती है। उत्पादन में लगभग 24 से 64 प्रतिशत तक की कमी आती है। बादलयुक्त मौसम के साथ साथ उच्च अर्दृता व 26-30 ड़िग्री सेलसियस तसपमान इस रोग का प्रमुख कारक है। फसल में रोग उत्पन्न करने वाले प्राथमिक स्त्रोत युक्त बीज तथा रोग युक्त फसल अवशेष होते है।
लक्षणः-
इस रोग के प्रमुख लक्ष्ण पत्तियों पर भूरे रंग के गोल धंसे हुए विक्षत अथवा धब्बों का उत्पन्न होना है। इन धब्बों में रोगकारक कवक के संक्रमण के फसस्वरुप पत्तियों में ऊतक क्षय जाता है। अनुकूल वातावरण में धब्बों में रोगकारक कवक गहरे लाल रंग के कोनिडिया के गुच्छे बन जाते हैं जिस कारण यह धब्बे लाल रंग के दिखते हैं।
अनुकूल वातावरण में रोग की उग्र अवस्था में पत्तियों के संक्रमित भाग (धब्बें) झड़ जाते हैं जिसके फलस्वरुप पत्तियों में सुराख हो जाते हैं।
अनुकूल वातावरण में पौधों की पत्तियों में संक्रमण अधिक होने के कारण वह झड़ जाती हैं। जिसका प्रभाव पौधे की पैदावार पर पड़ता है।
फलियों में संक्रमण बीजों को भी प्रभावित करता है। इस रोग का कारक कवक रोगी पौधों के अवशेषों पर जीवित रहता हैं। संक्रमित बीजों में भी कवक का निवेश द्रव्य जीवित रह सकता है। रोगी पौधों के अवशेष तथा संक्रमित बीज दानों ही एन्थ्रेकजोन कारक कवक के प्राथमिक निवेश द्रव्य के सा्रेत हैं तथा इन्हीं से फसल में रोग का संक्रमण प्रारम्भ होता है। इस संक्रमण से बनने वाले कोनीडिया वायु द्वारा प्राकीर्णित हो रोग को फसल में फैलाने का कार्य करते हैं।
रोग का प्रबंधन
1. प्रमाणित बीज का प्रयोग करें। बीजों का थीरम अथवा कैप्टान द्वारा 2-3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज अथवा कार्बेन्डाजिम 0.5 -1 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
2. रोग के लक्षण दिखते ही 0.2 प्रतिशत जिनेब अथवा थिरम का छिड़काव करें। आवयकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर अतिरिक्त छिड़काव करें। कार्बेन्डाजिम या मैंकोजेब (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव भी इस रोग के नियंत्रण हेतु प्रभावी है।