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बुवाई की विधि व समय

बुवाई की विधि
बुवाई सीड ड्रिल द्वारा करनी चाहिए ताकि पंक्ति एवं बीज की उचित दूरी बनी रहे एवं उचित प्रबंधन किया जा सके। खेत में पर्याप्त नमी का होना अति आवश्यक होता है। काबुली चना की अच्छी उपज के लिए खेत में पौधों की समुचित संख्या होनी चाहिए। साधारणतया पौधों की संख्या 25 से 30 प्रति वर्ग मीटर रखी जाती है। पंक्तियों (कूंडों) की बीच की दूरी 30 -45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से.मी. रखी जाती है। असिंचित तथा पिछेती बुवाई की स्थिति में कूंड़ से कूंड़ की दूरी 30 से.मी. तथा सिंचित दशा, काबर भूमि में कूंडों के बीच की दूरी 45 से.मी. रखनी चाहिए। देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में, जहाँ काबुली चना 150-160 दिन में पककर तैयार होता है, प्रति वर्ग मीटर में पौधों की संख्या 22-25 होनी चाहिए।

बुआई का समय
असिंचित अवस्था में काबुली चना की बुवाई का उचित समय अक्टूबर का दूसरा अथवा तृतीय सप्ताह है। सिचिंत अवस्था में काबुली चना की बुआई नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक अवश्य कर लेनी चाहिए उत्तर भारत में चना की खेती धान की फसल कटने के बाद भी की जा सकती है, ऐसी स्थित में बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए। बुवाई में अधिक विलम्ब करने पर पैदावार में कमी हो जाती है, साथ ही काबुली चना में फली भेदक का प्रकोप होने की संभावना रहती है। दक्षिण भारत में काबुली चना की फसल उत्तर भारत की तुलना में जल्दी हो जाती है, अतः बुवाई जल्दी की जाती है। देश के मध्य भाग में अक्टूबर का प्रथम तथा दक्षिणी राज्यों में सितम्बर का अंतिम सप्ताह तथा अक्टूबर  का प्रथम सप्ताह काबुली चना की बुवाई के लिए सर्वात्तम माना गया है।